तहसीन मुनव्वर, वरिष्ठ पत्रकार, आर्टिस्ट , लेखक और मशहूर शायर
अल्लामा इक़बाल के इमामे हिंद राम ~ तहसीन मुनव्वर
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा जैसी देश भक्ति से भरी रचना देने वाले अल्लामा इक़बाल ने श्री राम के साथ साथ भारत के कई महान और पूजनीय धार्मिक व्यक्तित्व को अपनी कविताओं के मध्यम से उर्दू पाठकों तक पहुंचाया था। भगवान कृष्ण, महात्मा बुद्ध, गुरु नानक देव जी, भरतरी हरी, विश्वामित्र और स्वामी राम तीर्थ को भी उन्हों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से उर्दू पढ़ने वालों तक पहुंचाने का काम किया। भरतरी हरी के दर्शन शास्त्र का तो उनके ऊपर बहुत असर भी था। यह और बात है कि खुदा से शिकवा लिखने वाले इक़बाल की शायरी को पाकिस्तान ने अपना ओढ़ना बिछोना बना लिया। कहते हैं कि इक़बाल की 1910 के बाद की शायरी का रुख़ बदल गया था। खुदा से शिकवा के बाद इक़बाल ने जवाबे शिकवा भी लिखा। शिकवा और जवाबे शिकवा पढ़ने से संबंध रखते हैं।
आज राम नवमी पर अल्लामा इक़बाल के इमामे हिंद राम पर इस कविता की याद आना ज़रूरी है;
लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हिंद। सब फ़लसफ़ी हैं ख़ित्ता-ए-मग़रिब के राम-ए-हिंद।
ये हिन्दियों की फ़िक्र-ए-फ़लक-रस का है असर। रिफ़अत में आसमाँ से भी ऊँचा है बाम-ए-हिंद।
इस देस में हुए हैं हज़ारों मलक-सरिश्त। मशहूर जिन के दम से है दुनिया में नाम-ए-हिंद।
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़। अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिंद।
एजाज़ इस चराग़-ए-हिदायत का है यही। रौशन-तर-अज़-सहर है ज़माने में शाम-ए-हिंद।
तलवार का धनी था शुजाअ’त में फ़र्द था। पाकीज़गी में जोश-ए-मोहब्बत में फ़र्द था।
अल्लामा इक़बाल ने श्री राम चंद्र जी को न सिर्फ़ पवित्रता, बहादुरी और प्रेम से भरा हुआ कहा है बल्की इस कविता में वह भारत को संत महात्माओं की धरती कहते हुए यह भी कहते हैं कि पश्चिम के दार्शनिक भी भारत के आध्यात्मिक चिंतन से राम होते हैं। वह भारत की आकाश तक पहुंचने वाली सोच और चिंतन को भारत के जग भर में ऊंचे नाम और सम्मान की बुनियाद बताते हैं।
अल्लामा इक़बाल भगवान राम के नाम को कहते हैं कि इस नाम पर भारत गर्व करता है और जिनके पास देखने वाली नज़र यानि दिव्य दृष्टि है वह राम को भारत का इमाम कहते हैं। इमाम का अर्थ होता है जिस के पीछे सब चलते हों। जो आगे हो या जो रस्ता दिखाए या दिग्दर्शन कराए। अल्लामा इक़बाल कहते हैं कि यह राम जी के मार्गदर्शन और आदेश की किरणें ही हैं जिन से भारत की शामें तक दुनिया भर के सवेरों से अधिक रौशन है। देखा जाए तो इस छोटी सी कविता में अल्लामा इक़बाल ने राम जी के पूरे व्यक्तित्व को गागर में सागर की भांति समोया है।
अंत में मैं अल्लामा इक़बाल की बात को आगे बढ़ाते हुए अपने शब्दों में इतना कहूंगा;
हम दिल से करते हुए एहतराम कहते हैं उन्हें हम हिंद का अब भी इनाम कहते हैं दिलों के बीच बना दे जो प्यार का सेतु उस आला ज़ात को भगवान राम कहते हैं